भारत की धरती पर आज भी
रेँगते हैँ कुछ अनोखे चोर।
सभ्य जनोँ के वेश धारण कर
ले चलते देश को बर्बादी की ओर।
दीमक के कीड़े की भाँति
नहीँ होने देते शोर।
चुपचाप, देश को अन्दर ही अन्दर
खोखला करते हैँ घुसखोर!
खून व पसीने बहाकर
एक-एक पैसा कमाते लोग।
उस पैसे पर ताक जमाये
बैठे रहते हैँ घुसखोर।
अपने स्वास्थ्य की फ़िक्र न कर
रात-भर की नीँद त्यागकर
कामयाबी के सपने लेकर
अध्ययन करते हैँ जो छात्र,
उनके अरमानोँ को रौँदकर
लाखोँ रुपये की रिश्वत लेकर
कम अंक प्राप्त किये छात्र को
भरती लेते हैँ कालेज घुसखोर।
अमीर हैँ बनते अधिक अमीर
गरीब बनते और गरीब!
जब अमीर रिश्वत देकर
आगे निकल जाते हैँ,
गरीब अपने सर पटकते
पीछे ही रह जाते हैँ।
वे कुछ कर नहीँ पाते हैँ,
सिर्फ मचाते हैँ शोर-
"अब इस दुनिया मेँ नहीँ है जीना...
यहाँ भरे हैँ सब घुसखोर!!"
शरीफ़ व मासूम लोगोँ पर
लगते ज़ुर्म का आरोप।
खुद ज़ुर्म कर बच निकलते ज़ुर्मी,
निर्दोष पर रहता सज़ा का प्रकोप।
ऐसा इस लिए होता है
कि ज़ुर्मी रिश्वत देते हैँ।
पाप के पैसे लेकर खुद को
बेच देते पुलिस घुसखोर।
ईमानदार अफ़सर या गरीब किसान....
मेहनती छात्र या कोई भी सच्चा इन्सान
आज जीते हैँ दुभर जीवन।
घुसखोरोँ की टोली मेँ
चूर-चूर हो जाते उनके अरमान।
भारत की धरती पर आज भी
हो रहा ऐसा अन्याय।
न्याय के मन्दिरोँ मेँ भी
मिलते हैँ अनेक घुसखोर!!
अब हमेँ उठानी है आवाज़
देनी है अब अपनी राय।
देश की उन्नति के लिए
लाना है एक नया मोड़॥
रहना है हमेँ यह ज्ञात
भारत आज भी हमारी है।
हमेँ ही अब आगे बढ़कर
इसकी लाज बचानी है॥
Sunday, 21 August 2011
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